मैं शब्दों का कैदी रहा
न वाक्यों की कोई जंजीर मेरे फैसलों को रोक पाई,
मगर
न जाने ये हुआ कैसे
न वाक्यों की कोई जंजीर मेरे फैसलों को रोक पाई,
मगर
न जाने ये हुआ कैसे
आपके एक बयाँ ने
मुझे लफ्जों का कैदी बना दिया
बिल्कुल बदल डाला मेरे वजूद को
मुझे लफ्जों का कैदी बना दिया
बिल्कुल बदल डाला मेरे वजूद को
बिछड़ते समय दरीचे से तुम्हारा मुझे येे कहना-
'मुझे तुम याद आते हो'!
'मुझे तुम याद आते हो'!
-स्वरचित
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